1971 में भारतऔर पाकिस्तान के बीच युद्ध जारी था। साल के अंत में यानी कि 8 दिसंबर को गुजरात के कच्छ के एक गांव में पाकिस्तान की तरफ से ताबड़तोड़ गोलियां बरसाईं जा रही थीं। इसके अलावा यहां बमबारी भी जारी थी। इस बमबारी में सबसे अधिक नुकसान भारतीय वायुसेना की एयर स्ट्रिप को हुआ था। वह पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुकी थी। ऐसे में एयर फोर्स के जहाज दुश्मन को जवाब देने के लिए उड़ान भरने में नाकाम साबित हो रहे थे।
इस बीच वायुसेना के कमांडिंग चीफ ने बीएसएफ के अधिकारियों से बात की तो उन्हें बताया गया कि कम समय में सड़क को दोबारा तैयार करने के लिए ज्यादा लोगों की आवश्यकता होगी। यह खबर पूरे इलाके में फैल चुकी थी कि भारतीय सेना को मदद की जरुरत थी। ऐसे में देशप्रेम की भावना लिए आगे आए 300 लोग। भुज के इन लोगों ने अपनी जान की बाजी लगाकर वायुसेना की एयर स्ट्रिप को जल्द से जल्द तैयार करने में सहायता का आश्वासन दिया। इनमें लोगों में सबसे अधिक महिलाएं थीं। उन्होंने महज़ 72 घंटे में वायुसेना की एयर स्ट्रिप को तैयार कर दिखाया था।
“हम पीछे नहीं हटे..”

इन महिलाओं के ग्रुप की सदस्य वलबाई सेघानी ने एक समाचार पत्र से बात करते हुए किया था। उन्होंने कहा था कि, “9 दिसंबर 1971 की रात को मुझे लगा कि मैं एक फ़ौजी हूं। जिस वक़्त मुझे बताया गया कि जहां रोड बनानी है, वहां लगातार बम बारी हो रही है, तो एक भी महिला पीछे नहीं हटी। उलटे हम सारी महिलाएं दुगनी उत्साह से काम करने लगीं।”
उन्होंने आगे कहा कि, “हम 300 महिलाएं थी, हम सभी अपने घर से इस इरादे से निकलीं थीं कि किसी भी कीमत पर अपने पायलट्स के लिए रोड बनानी है ताकि वो उड़ान भर सकें। अगर हम मरते भी तो भी देश के लिए लड़ते-लड़ते मरते।”
‘हम कामयाब हुए..’
वहीं, वायु सेना के स्क्वाड्रन लीडर विजय कार्णिक ने एक समाचार पत्र से बात करते हुए इन महिलाओं के विषय में कहा था कि “हम जंग लड़ रहे थे और इस जंग में इन महिलाओं को कुछ होता तो ये बहुत बड़ा नुकसान होता। साथ ही हमें ये भी देखना था कि जहाज़ों की उड़ान के लिए सड़क जल्द से जल्द तैयार हो। इसलिए मैंने 50 IAF अफ़सर और बाकी DSC के 60 जवानों की मदद से ये काम अपने ज़िम्मे लिया और हम कामयाब हुए।”