तमिल फिल्म इंडस्ट्री के सुपरस्टार अल्लु अर्जुन की हाल ही में रिलीज हुई फिल्म पुष्पाः दा राइज़ ने बॉक्सऑफिस पर पुराने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। इस फिल्म ने खासी लोकप्रियता हांसिल की है। फिल्म की कहानी लाल चंदन की लकड़ी के इर्द-गिर्द घूमती है। मूवी में दिखाया जाता है कि इस लकड़ी की तस्करी करके एक साधारण सा मजदूर पुष्पा आखिर कैसे कुछ ही समय में करोंड़ो का मालिक बन जाता है।
लेकिन क्या आप इस लकड़ी के विषय में जानते हैं? बता दें, फिल्म की कहानी भले ही काल्पनिक हो लेकिन इसमें जिस लकड़ी के विषय में बात की जा रही है वह असली है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, रक्त चंदन नाम की यह लकड़ी भारत का वो खजाना है जिसके लिए कई देश करोंड़ो खर्च करते हैं।
भारत में चंदन सिर्फ एक लकड़ी के रुप में ही नहीं देखा जाता है बल्कि इसका संबंध धार्मिक परंपराओं से भी है। चंदन तीन प्रकार का होता है। सफेद, पीला और लाल। तीनों में अंतर बस यह है कि सफेद और पीले चंदन का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है। इसकी लकड़ी से खुशबू आती है। जबकि चंदन की लकड़ी में कोई खुशबू नहीं होती। विज्ञान की भाषा में लाल चंदन को Pterocarpus santalinus कहते हैं।
इस चंदन की लकड़ी का उपयोग आयुर्वेदिक औषधियों को तैयार करने के लिए किया जाता है। इससे सजावट से लेकर वाद्य यंत्र तक तमाम सारे प्रोडक्ट्स तैयार किए जाते हैं। वहीं, इस लकड़ी का से शराब और कॉस्मेटिक्स का सामान भी बनाया जाता है।
लाल सोना कहे जाने वाले इस पेड़ की औसतन ऊंचाई 8-12 मीटर होती है। ये पेंड़ भारत के चुनिंदा इलाकों में ही पाए जाते हैं। जानकारी के मुताबिक, आंध्र प्रदेश के नेल्लोर, कुरनूल, चित्तूर, कडप्पा में फैली शेषाचलम की पहाड़ियों में ये पेड़ पाए जाते हैं।
इंटरनेशनल मार्केट में लाल चंदन की मांग काफी मात्रा में होती है। चीन, जापान, सिंगापुर, यूएई, और आस्ट्रेलिया जैसे तमाम देशों में लाल चांदन का सबसे अधिक उपयोग होता है। इन सभी देशों में चीन सबसे इसका उपयोग होता है। चीन में इस लकड़ी से फर्नीचर, सजावटी सामान, पारंपरिक वाद्ययंत्र बनाए जाते हैं। यही कारण है कि इसकी स्मगलिंग भी जोरों-शोरों से होती है। विदेशी बाज़ार में इस लकड़ी के बदले करोंड़ो मिलते हैं। हालांकि, इस पेड़ को काटना कानून जुर्म है। इसकी सुरक्षा के लिए स्थानीय पुलिस प्रशासन के साथ-साथ स्पेशल टास्क फोर्स यानी एसटीएफ को भी तैनात किया गया है।