आमतौर पर 12-13 साल के बच्चे खलते-कूदते, खाते-पीते या फिर पढ़ते-लिखते हैं। इनकी दुनिया इस उम्र में इनके दोस्त-यार होते हैं। लेकिन कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जिन्हें इस उम्र में ही अपना भविष्य संवारने की चिंता होती है। आज हम आपको एक ऐसे ही बच्चे से मिलवाने जा रहे हैं जो कहने को तो बच्चा है लेकिन उसने कार्यों से आपको अंदाज़ा लग जाएगा कि वो कितना बड़ा है।
विशाल मेहता ने रचा इतिहास
इस मासूम से दिखने वाले बच्चे का तिलक मेहता है। इसकी उम्र महज़ 13 साल है। ये मुंबई में अपने पिता विशाल मेहता के साथ रहता है। आज तिलक 100 करोंड़ के टर्नओवर वाली कंपनी के मालिक हैं और ये सब उन्होंने अपनी छोटी सी उम्र में किया है। अब आप सोंच रहे होंगे 13 साल की उम्र में एक बच्चा अपना होमवर्क तक सही ने नहीं कर सकता वही बच्चा 100 करोंड़ की कंपनी का मालिक कैसे बन गय़ा।

आपको बता दें, इसके पीछे बड़ी ही दिलचस्प कहानी छिपी हुई है, आइये जानते हैं। दरअसल, अमूअन तौर पर जब बच्चे छोटे होते हैं तब वे अपनी किसी भी जरुरत की चीज़ के लिए अपने माता-पिता पर निर्भर होते हैं। वे उन्हें अपनी पेन, पेंसिल, रबर, कटर, कॉपी आदि के लिए बताते हैं और माता-पिता ने उन्हें दुकान से लाकर दे देते हैं। ऐसा ही कुछ तिलक की जिंदगी में हुआ।
पिता का कर रहे थे इंतजार
एक दिन तिलक शाम के समय अपने पिता विशाल मेहता का ऑफिस से लौटने का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे। इसका कारण था कि उन्हें अपनी पढ़ाई से संबंधित कोई चीज़ दुकान से लेनी थी। चूंकि वे स्वयं छोटे थे तो बाहर जा नहीं सकते थे।
दिमाग में आया धांसू आइडिया
शाम को जब तिलक के पिता आए तो उन्होंने देखा कि वे थके हुए हैं। ऐसे में उनकी हिम्मत जवाब दे गई कि वे उनसे कहें कि उन्हें कॉपी दिलवा दीजिये चलके। बस यहीं से तिलक को बिजनेस का आइडिया सूझा। उन्होंने अपने पिता को बताया कि क्यों ना एक ऐसी कंपनी की शुरुआत की जाए जिसमें हम 24 घंटे के भीतर प्रोडक्ट्स की डिलवरी कर सकें। यह कोरियर सर्विस पूरी तरह से महिलाओं और बच्चों की जरुरतों पर फोकस्ड थी। तिलक के पिता को उनका यह आइडिया इतना पसंद आया कि उन्होंने तुरंत अपने दोस्त घनश्याम पारेख से मुलाकात की।
घनश्याम ने छोड़ी बैंक की नौकरी
बता दें, घनश्याम बैंक में अधिकारी थे। उन्हें विशाल का यह आइडिया इतना पसंद आया कि उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़कर इस बिजनेस में पार्टनरशिप का फैसला ले लिया।
मालूम हो, सब कुछ फाइनल होने के बाद कंपनी का नाम रजिस्टर कराया गया। इसका नाम पेपर एंड पेंसिल रखा गया। इस कंपनी के मालिक बने तिलक मेहता और सीईओ बने घनश्याम पारेख।
डिब्बा वालों का लिया सहारा
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, शुरुआत में प्रोडक्ट्स की डिलिवरी के लिए तिलक और उनके पिता ने मुंबई के डिब्बा वालों की मदद ली। उन्होंने तिलक को बच्चा समझकर उसकी बात मान ली और पैसे भी नहीं लिए। इसके बाद तिलक ने इलाके के बुटीक, स्टेशनरी शॉप्स आदि से संपर्क किया। कुछ ही दिनों में उनका यह बिजनेस चल पड़ा। आज पेपर एंड पेंसिल नाम की इस कंपनी का सालाना टर्नोवर 100 करोंड़ का है। यह कंपनी मुंबई के एक छोर से दूसरे छोर तक महज़ 24 घंटें में सामान डिलीवर करती है।
200 लोगों को दिया रोजगार का अवसर
गौरतलब है, तिलक ने अपने इस आइडिया से 200 लोगों को रोजगार का मौका दिया है। वे अपने साथ-साथ अन्य लोगों को भी बढ़ने का मौका दे रहे हैं। उनका मानना है कि आने वाले कुछ सालों के भीतर वे कंपनी को और विकसित करेंगे। साथ ही इसका टर्नओवर 200 करोंड़ तक लाने का प्रयास करेंगे।